बँटवारे की कहानी # जिंदगी की किताब (पन्ना # 387)

बँटवारे की कहानी ….

श्री शर्मा के संयुक्त परिवार की तारीफ मोहल्ले भर मे की जाती थी चार बेटों का भरापूरा परिवार था सभी आपस मे प्रेम से रहते थे एकाएक शर्माजी की असामयिक मृत्यु से पूरा परिवार हिल गया धीरे धीरे समय का कुचक्र ऐसा चला कि भाइयों की आपस मे अनबन होने लगी

आज भाईयों मे पैतृक संपत्ति के बँटवारे को लेकर सुबह से ही घर मे होहल्ला , गाली गलौज हो रहा था। कोई भी हिस्से को लेकर समझौता नही करना चाहता सब अपनी अपनी शर्तों को लेकर जिद पर अड़े थे सुलह के कोई आसार दूर दूर तक नज़र नहीं रहे थे अगर रिश्तेदार बीच में ना आते तो बात मारपीट तक पहुँच जाती उसी घर में सभी भाईयो के बच्चे जो हमेशा एक साथ खेलते थे ,सहमे हुए लड़ाई को देख रहे थे।

पूरा मोहल्ला उस घर की लड़ाई के तमाशे का आनंद ले रहा था कुछ महिलाये कानाफूसी में व्यस्त थीं।

सब भाईयों को मॉ से ज्यादा जमीन जायदाद के हिस्से का ख़्याल था यहॉ तक की मॉ के ध्यान रखने की ज़िम्मेदारी एक दूसरे पर डालने की कोशिश कर रहे थे मॉ की हालत बहुत कमजोर हो रही थी ।बेटों पर पूरी तरह से आश्रित पैरालाइसिस से ग्रस्त माँ कुछ करने या बोलने में असमर्थ थी। बस बिस्तर पर लेटे लेटे सभी बेटे को लड़ते देखकर ऑंखो से अविरल आँसू बहा रही थी

पिताजी ने वसीयत नही लिखी क्योकि उन्हे बच्चो पर पूरा भरोसा था ख़ैर रिश्तेदारों की मदद से जैसे तैसे जमीन जायदाद , घर ,जेवर , बर्तन का बँटवारा हो गया इसके बाद अब बॉटने को माँ की सिर्फ एक लोहे की पुरानी छोटी सी अलमारी रह गयी जिसमे वह हमेशा ताला लगा कर रखती थी।

सभी भाईयों उनकी पत्नियों के मन में ये बात बैठ गयी थी कि जरूर माँ ने इसमें सोने चॉदी के ज़ेवरात और ढेर सारे पैसे छुपा कर रखे होंगे, तभी तो आज तक किसी को मॉ ने ना तो अलमारी को हाथ लगाने दिया ,ना ही चाबी दी

देखते देखते चाभी मिलने पर भाइयों ने हथौड़े से ठोक ठोक कर अलमारी के ताले को तोड़ डाला।

अलमारी खुलने के बाद,अंदर का सामान देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गए अंदर एक बेहद पुरानी सुंदर साड़ी मोतियों की माला थी उसके पासएक रंगीन कागज रखा था जिस पर लिखा था .. पति के द्वारा दिया गया सबसे पहला अनमोल और सबसे सुंदर उपहार ।उसके पास ही एक मीनाकारी के छोटे बॉक्स मे काजल की डिब्बी , बच्चो को नजर से बचाने वाले नज़रिये , स्टील की छोटी प्लेट ,चम्मच , गिलास रखे थे उस डिब्बे पर लिखा था मेरे बच्चो की बचपन की अद्भुत यादे ।बॉक्स के पास ही चमक खोई पीतल की एक काफी पुरानी थाली , कटोरियाँ गिलासे रखी थी

थाली ,कटोरियाँ गिलास देखते ही सभी भाइयों को याद आया कि कैसे माँ बचपन में इसी थाली में सबको एक साथ खाना देतीं थीं और कभी भी उस खाने में बँटवारा नहीं होता था सभी भाई प्रेम से एक साथ जी भरकर खाना खाते और मॉ खिलाते खिलाते नही थकती बच्चो का आपस मे प्रेम देखकर गुमान करती कि मेरी जैसी औलाद तो किस्मत वालो को नसीब होती है बार बार सबकी नजर उतारती यदि कोई उनको बुढापे के हिसाब से रूपये पैसे बैंक मे अपने नाम से रखने के लिये सलाह देता तो मॉ बोलती कि मेरे बेटों के होते हुये बुढापे मे कैसी फ्रिक

माँ ने यही कीमती खज़ाना अपनी अलमारी में छिपा रखा था सभी भाई संदूक के अंदर का सामान देखकर बहुत शर्मिंदा थे शर्मिन्दगी से नजर नही उठा पा रहे थे फिर क्या था ,सबने एक दूसरे को देखा और भीगें आँसुओ से एक दूसरे को गले लगाकर माँ के पैर पकड़ लिए।उन्हें समझ गया था कि दुनिया मे चाहे हर चीज का बंटवारा हो सकता है पर मॉ बाप का प्यार और उनके दिये अच्छे संस्कारों का कभी बंटवारा नही हो सकता

आज इस बात मे कितनी सच्चाई है कि पहले पड़ौसी भी घर का हिस्सा हुआ करते थे और अब एक ही घर मे ना जाने कितने पड़ौसी हो गये है ….

दोस्तो जहॉ तक हो कभी भी पैसो के पीछे रिश्तो की अमीरी खत्म ना होने देना

लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏


आपकी आभारी विमला विल्सन

जय सच्चिदानंद 🙏🙏

picture taken from google