परंपराये # जिंदगी की किताब (पन्ना # 377)

परम्परायें ….

एक अंधे दम्पत्ति थे ,जो मिलकर सब कार्य आसानी से कर लेते थे । लेकिन सबसे बडी परेशानी तब होती थी ,जब अंधी पत्नी खाना बनाती और कुत्ता आकर रोटी खा जाता । इस वजह से रोटियां या तो कम पड़ जाती या खाने को नही मिलती । तब अंधे पति को एक व्यक्ति ने सुझाव दिया कि तुम पत्नी के रोटी बनाने तक डंडा लेकर दरवाजे पर बैठ जाना व थोड़ी थोड़ी देर में डंडे से खटखट करते रहना । कुत्ता तुम्हारे हाथ मे डंडा देखेगा और डंडे की खटखट सुनकर अपनेआप डर कर वहॉ से भाग जाएगा और रोटियां सुरक्षित रहेंगी । आईडिया काम कर गया , रोज रोज कुत्ते द्वारा रोटी खाने की परेशानी दूर हो गई

कुछ वर्षों बाद उनको पुत्र हुआ, जिसकी आंखे थी और स्वस्थ था। उसे पढ़ा लिखाया , काम धंधे के क़ाबिल बनाया व समयानुसार उसकी शादी कर दी । घर मे बहू आयी। बहु जैसे ही रोटियां बनाने लगती तो लड़का डंडा लेकर दरवाजे पर खटखट करने लगता । बहु ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो , माजरा क्या है ? लड़के ने बताया ये हमारे घर की परम्परा है, मेरी माँ जब भी रोटी बनाती तो पिताजी ऐसे ही करते थे।

कुछ दिन बाद उनके घर मे एक समझदार व गुणवान व्यक्ति आया । माज़रा देखकर सब बात समझ गया और लड़के से बोला कि बेटा तुम्हारे माता पिता अंधे ,अक्षम थे तो उन्होंने डंडे की खटखट के सहारे रोटियां बचाई। लेकिन तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों की आंखे है, तुम्हे इस खटखट की जरूरत नहीं। बेटा परम्पराओं के पालन में विवेक को महत्त्व दो ।

ठीक इसी तरह उन सभी के लिये जो कहते है कि बहुएं हमारा कहना नहीं सुनती , पहले से चली आ रही परंपरा को भूलती जा रही है ,सलवार सूट और जीन्स पहन कर घूमती हैं। साड़ी नही पहनती है या सर पर पल्लू या चुनरी रखे बिना बाजार चली जाती हैं । कैसे समझाऊँ आजकल की बहुओं को ,लाज शर्म तो रही नही । हमारे जमाने मे तो ऐसा नही होता था …..

उन सभी को बस इतना कहना है कि हिंदू स्त्रियों में पर्दा प्रथा मुगल आततायियो के कारण आयी थी क्योंकि वो सुंदर स्त्रियों को उठा ले जाते थे। इसलिए स्त्रियों को मुंह ढककर रखने की आवश्यकता पड़ती थी। सर पर हमेशा पल्लू होता था ताकि घोड़े के पदचाप की आवाज़ आये तो मुंह पर पल्ला तुरन्त खींच सकें।

आज हम स्वतन्त्र देश के स्वतन्त्र नागरिक है, राजा का शासन और सामंतवाद खत्म हो गया है। अब स्त्रियों को सर पर अनावश्यक पल्ला और पर्दा प्रथा पालन की आवश्यकता नहीं है।

पहले सब लकड़ियों से चूल्हे में खाना बनाते थे, लेकिन अब गैस में बनाते है।

पहले तॉगा,बैलगाड़ी थी और अब डीज़ल व पेट्रोल गाड़िया है ।

अब टीवी,मोबाइल,लैपटॉप, कूलर,फ्रिज , वॉशिंग मशीन , ए.सी … इत्यादि कई नई टेक्नोलॉजी उपलब्ध है ,जिनका उपयोग हम सब बिना झिझक के कर रहे हैं । फिर आज क्यो हम बहुओं को पुराने जमाने के हिसाब से रखना चाहते है ? सलवार कुर्ता ,जीन्स टॉप , गाउन , इत्यादि सभ्य परिधान है व उसे पहनना अनुचित भी नही है ।

रोका टोकी का एक कारण यह भी है कि लोग क्या कहेंगे ? इन सब पर ध्यान ना दीजिये । जब आपका बुढ़ापा आयेगा और सेवा की जरूरत होगी तो कहने वाले लोग कभी उपलब्ध न होंगे।बेटे बहु ही आपका ख़्याल रखेंगे ।

यदि कोई बहू सिर पर पल्लू रखे लेकिन वृद्धावस्था मे सास ससुर को कष्ट दे तो क्या ऐसी बहु ठीक रहेगी ? दरअसल पर्दा प्रथा से ज्यादा बड़ो के प्रति ऑंखो मे लाज शर्म व बोली मे सम्मान व विनय ज्यादा मायना रखता है ।

इसके अलावा जब हम बेटियाँ को उन्ही वस्त्रों मे स्वतंत्रता के साथ घूमते देखकर खुश होते है तो बहु के लिए स्वीकार क्यो नही कर पाते है ?

बहु किसी की बेटी है, आपकी बेटी भी किसी की बहू है।

कही कही पर बहुओ के साथ बेटियॉ पर भी इस तरह की पाबंदी होती है ।

यदि घर मे अच्छे संस्कार बनाये रखना चाहते हो तो प्यार से बहु बेटी को समझाइये व उनका भी पॉइंट ऑफ़ व्यू समझने की कोशिश कीजिये व साथ मे स्वीकारने का भी दम रखिये । उचित मात्रा मे उन्हे भी स्वतन्त्रता और प्राइवेसी दीजिये ।

आजकल के जमाने की रफ़्तार को देखिये कितना तेज़ी से बदल रहा है ।जिस तरह आपने मोबाइल जैसी टेक्नोलॉजी को स्वीकार किया है वैसे ही घर में सुख-शांति और आनन्दमय वातावरण के लिए बहू को नये परिधान मे स्वीकार कर लीजिये । बहु को एक मां की नज़र से बेटी रूप में देखिए और उससे मित्रवत रहिये।


लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏

आपकी आभारी विमला विल्सन

जय सच्चिदानंद 🙏🙏

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