बदलते वक्त मे
बदल गई इंसान की सोच
मानवीय भावनाओ मे आ गई खोट ।
यूँ तो कहलाते है
हम आर्यों की संतान
पर ढूँढने से भी ना मिले
इंसान की हैवानियत का भंडार ।
हम इंसानो की भूखी हवस से
जानवर तो क्या
इंसान भी कहॉ बच पाते है ।
कैसे इंसान है जो खुद
इंसानियत का सौदा करते है ।
सोचो इन सबका
क्या होगा अंजाम ?
ऐसी भूखी हवस की हिंसा से
देश सदियों तक रोयेगा
नाम ले लेकर अहिंसा का ।
कहते है सर्प का विष
बहुत ज़हरीला होता है ।
लेकिन इंसानो ने
सर्पो को भी पीछे छोड दिया है ।
भला इंसानो से ज्यादा
ज़हरीला कौन कहलायेगा ?
बुराई से लिपट कर इंसान
हो गये उसके ओत प्रोत
और बन गये हिंसा के दोस्त
अहिंसा को बेकार मे यूँ ही
कर दिया बदनाम ।
सोचो ऐसे इंसानो से
बुरा और कौन होगा ?
इस देश का क्या अंजाम होगा ?
आपकी आभारी विमला विल्सन
लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
यूँ तो कहलाते है
हम आर्यों की संतान
पर ढूँढने से भी ना मिले
इंसान की हैवानियत का भंडार ।
bilkul sahi likha apne……insan ki soch pataa nahi kahan jaakar rukegi.
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पॉचवे आरा का असर आ ही रहा है । लोग धर्म से विमुख होकर धीरे धीरे मानवता भी खोते जा रहे है ।
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Sahi kaha apne..
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