मन के भाव….

मनुष्य जिंदगी बड़ी दुर्लभ हैं और हमें अपना पूरा जीवन किये गये मन के भावो के अनुरूप बिताना पड़ता है ।भाव के आधार से हमारे कर्मो का बंधन होता हैं वही कर्म का भुगतान हमें जिंदगी भर करना पड़ता हैं ।प्रत्येक इंसान को हमेशा दिल से हर समय एक ही भाव करना चाहिये कि हमारे मन वचन काया से किसी भी जीव को किंचितमात्र भी दुख न पहुँचे तो हमारा मनुष्य जीवन सार्थक हो जायेगा । 

मनुष्य जीवन मे भावो का बड़ा महत्व हैं ।हम जैसा भाव करते हैं उसके अनुरूप हमें जिंदगी मिलती हैं । मनुष्य का अगला भव भी भाव से तय हो जाता हैं ।
उदाहरण के लिये हम किसी व्यक्ति को खुश करने के लिये सबके सामने अच्छा बोलकर उसकी प्रशंसा करते हो लेकिन मन ही मन मे उसके प्रति बुरे विचार आ रहे हो , उसके दोष ही दोष देख रहे हो तो इसका मतलब हम उसके प्रति खराब भाव कर रहे हे । कहानी- भाव का प्रभाव ….

किसी गाँव मेँ एक साधु रहता था ,जो दिन भर लोगो को उपदेश दिया करता था। ज्ञान की बड़ी बड़ी बाते करता । दूर दूर से लोग उसकी बातों लें प्रभावित होकर सुनने आते थें ।

उसी गाँव में एक नर्तकी भी रहती थी जो बहुत गरीब थी और पूरे परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी उस पर थी इसलिये वह लोगो के सामने नाचकर उनका मन बहलाया करती थी।

समय की गति कोई नही रोक सकता । एक दिन उस गॉव में मूसलाधार बारिश हुई और देखते देखते गाँव में बाढ़ आ गयी ।दोनो एक साथ उस बाढ़ की चपेट में आकर मर गये। 

मरने के बाद जब ये दोनो यमलोक पहूँचे तो इनके कर्मो और भावो के आधार पर इन्हें स्वर्ग या नरक दिये जाने की बात कही गई। 

साधु खुद को स्वर्ग मिलने को लेकर पूरा निश्चिंत था। वहीँ नर्तकी अपने मन मे ऐसा कुछ भी विचार नही कर रही थी। नर्तकी को सिर्फ फैसले का इंतजार था।तभी घोषणा हूई कि साधु को नरक और नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है। 

इस फैसले को सुनकर साधु एकदम गुस्से से यमराज पर चिल्लाकर पूछा ,यह कैसा न्याय है महाराज ? मैं जीवन भर लोगोँ को ज्ञान और उपदेश देता रहा फिर भी मुझे नरक नसीब हुआँ । जबकि यह नर्तकी जीवन भर लोगो को रिझाने के लिये नाचती रही और इसे स्वर्ग दिया जा रहा है। ऐसा क्यो ?

यमराज ने शांत भाव से उत्तर दिया,यह नर्तकी अपना व पूरे परिवार का पेट भरने के लिये मजबूरी में नाचती थी लेकिन इसके मन मे यही भावना थी कि मै अपनी कला को ईश्वर के चरणो में समर्पित कर रही हूँ। 

जबकि तुम उपदेश देते हुये भी मन में यह सोँचते थे कि काश तुम्हे भी नर्तकी का नाच देखने को मिल जाता और मजे करता लेकिन लोगो के सामने अपने आप को साधु प्रदर्शित करने के चक्कर में मन मारकर रह जाते । साथ मे तुम ईश्वर के इस महत्त्वपूर्ण सन्देश को भूल गए कि इंसान के कर्म से अधिक कर्म करने के पीछे की भावनाये मायने रखती है।अतः तुम्हे नरक और नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है। 

मित्रों, हम कोई भी काम करें,उसे करने के पींछे भाव अच्छा होना चाहिए , अन्यथा दिखने में अच्छे लगने वाले काम भी हमे पुण्य की जगह पाप का ही भागी बना देंगे।

भाव या तो सकारात्मक या नकारात्मक हो सकते है या नकारात्मक ।हमें सबके लिये पॉज़िटिव ही सोचना चाहिये ।

सभी इंसानों एक दूसरे से मान सम्मान और आदर पाने ,समाज मे नाम ,और न जाने कितनी अनगिनत अपेक्षाओ या चाहत या इच्छाओं की वजह स एक दूसरे के लिये मन ही मन इतने भाव खराब कर लेता है कि इस जिंदगी के साथ वह अगला भव भी बिगाड़ लेता हैं 
प्रकृति का नियम है जो बीज बोयेंगे वही फल आयेगा ,ठीक उसी प्रकार हम जैसा भाव करेंगे वैसा ही जीवन मिलेगा । 
सुख दुख देने वाला कोई नही होता हमारे कर्म ही हमें इसका अनुभव कराते हैं । 

गुरूत्वाकर्षण नियम की तरह हमारे जिंदगी का भी नियम हैं जो दोगे वही लौटकर हमारे पास वापस आयेगा । हम किसी को सुख या दुख जो भी देंगे तो हमें भी वही मिलेगा ।

लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏 

 जय सच्चिदानंद 🙏🙏

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